Kathadesh RSS Feed
Subscribe Magazine on email:    

कहानी : हाय दिल्ली उर्फ एक दिल्ली-सिकेकी वाह (1)

चित्रा: पंकज दीक्षित

जब से फोन हर ऐरे-गैरे के पास होने लगा है तब से पहुँचे हुए लोग उस जमाने के लिए तरसने लगे हैं जिसमें फोन की पहुँच बस पहुँचे हुए लोगों तक ही थी. कई बार ऐसा भी होता है कि फोन उन्हें वरदान नहीं, अभिशाप प्रतीत होता है. भूतपूर्व पहुँचे हुए व्यक्ति की आत्मा को तो ऐसे अवसरों पर अभूतपूर्व कष्ट होने लगता है. क्योंकि उन्हें अधिकतर फोन ऐरे-गैरे व्यक्तियों के ही आते हैं और सो भी यह प्रार्थना करने के लिए कि अमुक पहुँचे हुए व्यक्ति से मेरी सिफारिश कर दीजिये. साल सवा साल पहले तक मेरा भी यही हाल था. एक टीवी समाचार चैनल से ‘गौल्डन हैंडशेक’ पाकर उर्फ ‘सुनहरी लात’ खाकर मैं घर में उपेक्षित पड़ा रहता था और जो ऐरे-गैरे इतने ऐरे-गैंरे थे कि उनकी पूछ किसी वर्तमान पहुँचे हुए व्यक्ति तक नहीं थी, जब कहीं नौकरी के लिए सिफारिश करने की बात कहते तब झल्लाकर उनसे यह कहने की तबीयत होती कि पहुँच वाले मेरी सुन रहे होते तो क्या मैं ‘सुनहरी लात’ से हुई प्राप्ति को सहलाते-सहलाते दिन काट रहा होता, और तुम्हारा फोन सुनकर कोई पीए अब तक यह न कह चुका होता कि साहब तो मीटिंग में हैं.

पिछले वर्ष पहली जनवरी को मुझे फोन की उपस्थिति, और किसी भी सहायक अथवा चमचे की अनुपस्थिति विशेष रूप से खली. नये साल की पूर्व संध्या में आयोजित पार्टी से मैं भयंकर सिरदर्द, भयंकरतर उपेक्षादंश और भयंकरतम ईष्र्यादहन लेकर लौटा था. इस त्रिविध व्यथा से निपटने के लिए उस कुहरीली सुबह इधर मैं रजाई ओढ़-आढ़कर सोते रहने की कोशिश कर रहा था, उधर नत्थूखैरे-मार्का शुभचिंतक मेरा फोन दनादन घनघनाते ही चले जा रहे थे. भला हो श्रीमती जी का कि वह उन्हें अंग्रेजी में ‘थैक्यू, सेम टू यू’ और हिन्दी में ‘खूब सुखी रहो, स्वस्थ रहो, सानन्द रहो’ कहकर निपटाती रहीं, और साथ ही यह सूचना देती रहीं कि वह कल रात देर से सोये थे इसलिए आराम कर रहे हैं, लेकिन जब फोन घनघनाने की रजत जयंती हो गयी और कमरे में धूप आते हुए दो घंटे से भी ज्यादा समय हो चला तब गृहकार्यों में व्यस्त श्रीमती जी ने मुझे आराम छोड़कर फोन उठाने का व्यायाम करने की नेक सलाह दी.

मैंने उनका ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि मैं सिरदर्द के कारण पस्त पड़ा हुआ हूँ, इसलिए मेरे लिए उठकर फोन सुनना सम्भव नहीं है. इस पर, मसिजीवियों में गालिब के जमाने से निरंतर चली आ रही एक मुफ्तखोरीµ विशेष की भरपूर भत्र्सना की, फिर उन्होंने मुझ ‘इम्मोबाइल’ को एक अद्द ‘मोबाइल फोन’ थमा दिया कि तुम फोन तक जाने की स्थिति में नहीं हो तो क्या हुआ? फोन तो तुम तक आ ही सकता है. मैंने मोबाइल तकिये के पास रख लिया और यह सोचकर खुश हुआ कि मुझ अवकाश- प्राप्त प्राणी के पास अब पच्चीस के बाद तो ‘हैप्पी न्यू ईयर’ का कोई छब्बीसबां फोन आने से रहा. मैंने ‘नये साल की सुबह नींदभर सोया’ वाला विलायती आसन फिर साध लिया. लेकिन थोड़ी ही देर में पाया कि मोबाइल मेरे खर्राटे के जवाब में टर्राटे भर रहा है. मैंने फोन उठाया और बदन दबाकर दुःखी मन से कहा ”जी?“

दूसरे सिरे से चासनी में डूबी आवाज आयीµ ”फोन साहब को दो.“
मैंने देवी जी से नम्र निवेदन कियाµ ”यह साहब तो खुद ही अपना नौकर भी है आजकल.“
सुनकर वह चहक उठीµ ”हलो नटवर. अ वैरी हैप्पी न्यू ईयर. कैसी ‘पिटी’ कि आपका-सा ‘विटी’ इंसान ‘डूइंग नथिंग’ में लगा है. ‘डांच्यू थिंक’ हमें न्यू ईयर में इस बारे में ‘समथिंग’ करना चाहिए?“
मैं सुन रहा था और परेशान हो रहा था कि मेरी स्वर्गीया माताजी के बाद मुझे नटवर पुकारने वाली यह वृषभान किशोरी कहां से पैदा हो गयी. अस्तु, मैंने कहाµ ”सन् 2002 के साल में आप नये-नये कमाल करें लेकिन यह तो बताएं आप हैं कौन.“
वह खिलखिलाते हुए बोली ”गैस.“ मैंने कहाµ ”देखिये कुछ गड़बड़ खा-पी लेने के कारण मैं वैसे ही वायु-विकार से त्रास्त हूँ इसलिए आप और गैस मत करवाइये देवी जी.“
जवाब में पहले उसकी हँसी सुनाई दी, फिर उसके मृदु वचनµ ”आई एम बेबी नटवर नाॅट देवी. यू तो नो मी लाइक सीएल सुधारक्स ग्रैंड डाॅटर.“

मैंने अपने आप से कहा कि ओ हो! वह गोद की बच्ची अब इतनी बड़ी हो गई कि मुझे नटवर पुकारने लगी. फिर उससे नम्र निवेदन कियाµ ”जब आप चोखे लाल जी सुधारक की ग्रांड डाॅटर ही हैं तब मैं आपको अनलाइक उनकी पोती क्यों जानूंगा भला, जबकि आपकी बातों से तो यह बहुत ही लाइकली लग रहा है.“

वह बोली ”टूशे नटवर ‘बट व्हाॅट टू डू लाइक, स्टेटस में रहकर मेरी तो लाइक बोलने की आदत सी पड़ गई है. ओके नटवर. नाउ फाॅर बिजनैस, आपने सुना ही होना है कि मैं आजकल डैड की मीडिया एम्पायर देख रही हूँ. मैं आपसे कुछ डिस्कस करना चाहती थी. ज्वाॅइन मी फाॅर लंच इन ताज मानसिंह, मैं गाड़ी भिजवा दूँगी.“

मैंने थोड़ा भाव लेना जरूरी समझा कहाµ ”मुझे बदहज्मी हो रही है बेबी जी, इसलिए मैं कहीं खाने-वाने नहीं जाऊँगा.“
वह बोलीµ ”ओके नटवर. तो आपके लिए घर पर मैं ही कोई खिचड़ी, लाइक लाइट मील कुक करा देती हूँ.“

मैंने आव देखा न ताव फिर भाव ले बैठा कि मैं इस तरह शार्ट नोटिस पर किसी के घर-वर जाता नहीं. भाव लेते ही मैं खुद घबरा उठा कि कहीं बेबी बुरा मानकर बाइ-बाइ न कर बैठे. दूसरी ओर से फोन पर एक गहरी साँस लिए जाने की आवाज आई. मैंने दम साध लिया.
बेबी उवाचµ ”ओके नटवर. इन दैट केस व्हाई नाॅट हम लाइक आपके साकेत में ही मीट करें किसी काॅफी पार्लर में? डैड बोल रहे थे कि आप भी काॅफी के बारे में लाइक उतने ही मैड हैं. जितनी कि माॅम.“
सुनकर मेरी जान में जान आई. मैंने न केवल काॅफी के मामले में अपना मैड होना स्वीकार कर लिया. बल्कि काॅफी के बारे में मैड माँ की इस बेटी से काॅफी पार्लर में मीट करने का प्रस्ताव नितान्त ‘ग्लैड’ होकर स्वीकार कर लिया. लगे हाथ मैंने बेबी की ही नहीं, उसके दादा की भी कुशल-मंगल पूछ ली. टीवी समाचार चैनल से ‘सुनहरी लात’ खाकर साकेत के एमआईजी फ्लैट्स में दिन काटते हुए मुझे अकिंचन को जितनी खीझ बेबी द्वारा नाम लेकर पुकारे जाने से हुई थी उससे कहीं-कहीं ज्यादा खुशी यह सोचकर होती रही थी कि ”शायद मेरी रोजी का खयाल दिल में आया है, इसलिए पोती ने तेरी मुझे काॅफी पे बुलाया है “

मेरा यह उद्गार मीडिया-सम्राट चोखेलाल ‘सुधारक’ को संबोधित था जिन्होंने अपने सुधारक होने का सबसे बड़ा प्रमाण अपने नाम के आगे से जातिसूचक ‘शर्मा’ हटाकर दिया था. पारिवारिक परंपरा से पुरोहित चोखेलाल जी ने पत्राकार के रूप में अपना जीवन नगर संवाददाता के रूप में शुरू किया था. पत्राकारिता को एक नया आयाम देते हुए सुधारक जी ने घरेलू आयोजनों को सार्वजनिक समाचारों को विषय बनाया और पुरोहित तथा पत्राकार दोनों के रूप में तगड़ी दान-दक्षिण ग्रहण करके कुछ इस तरह के समाचार छापने लगेµ ”कूचा पातीराम के लाला हरदयाल गुप्त के निवास स्थान पर आज प्रातः काल उनके सबसे छोटे पुत्रा धनसुख लाल की मेरठ के मशहूर गजक-निर्माता तुलाराम जी अग्रवाल की पोती कनकलता से सगाई हुई. इस अवसर पर नगरपाल हरिपाल सिंह मालिक, विधायक रामसनेही जी अग्रवाल और अन्य गणमान्य व्यक्ति सपरिवार उपस्थित थे. दोनों ही पक्षों को हमारी हार्दिक बधाई.“

सुधाकर जी की माताओं, बहनों, भाभियों, सालियों की संख्या अपार थी इसीलिए वह समूचे राष्ट्र के प्रति प्रेम की कविताएँ लिखा करते. देवियों के दरबार में हाजिरी लगाने में वह इतने व्यस्त रहते कि जल्दी में घसीट मारी अपनी ‘कापी’ किसी और को थमा देते कि प्रेस में भेजने से पहले इस पर एक बार दृष्टिपात अवश्य कर लें बंधुवर. इसी के चलते कुछ लोगों को शिकायत रहती कि ‘आप तो वीर्यपात करने चले जाते हैं और हमें दृष्टिपात करने छोड़ जाते हैं.’ सुधारक जी की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उन्होंने समाचपत्रा के मालिक की स्थूल और कुरूप कन्या को कविता लिखना सिखाते-सिखाते उसे अपनी परिणीता बना लिया. इसी के चलते वह मीडिया-सम्राट बनने की राह पर लगे. उन्होंने ‘शुभ प्रभात’ नामक एक नया हिन्दी दैनिक निकाला जिसमंे संपादक के रूप में उनका अपना नाम जाने लगा लेकिन जिसका सारा काम कवि सम्मेलनों में उनके साथ ही हूट होते रहे वरिष्ठ पत्राकार और वीररस के भीरु कवि मातादीन शास्त्राी ‘निर्भीक’ करते रहे.
अनन्तर उनके अयोग्य समझे जाने वाले पुत्रा नेकराम ने यह प्रमाणित कर दिखाया कि अयोग्यता ही आज सबसे बड़ी योग्यता है. सुरा-सुन्दरी का भरपूर भोग करके सुधारक परिवार की नैतिक और कांग्रेस-विरोधी समाजवादियों की सोहबत करके राजनैतिक छवि बिगाड़ने वाले नेकराम ने चटपट चिटफंड आदि अनेक चमत्कारी आयोजनों से काफी पैसा पीटकर आयात-निर्यात का धंधा शुरू किया जो साम्यवादी देशांे में उनकी पत्नी काॅमरेड शशिबाला की अच्छी पहुँच के कारण बहुत फला-फूला.

नेकराम और शशिबाला ने सुधारक जी के मीडिया साम्राज्य का विस्तार किया और उसे राजर्षि और महामना युग से हृतिक और मैडोना युग में पहुँचाया. उस दौर में मैंने भी एक वर्ष ‘शुभ प्रभात’ में काम किया. लेकिन निर्भीक जी ने सुधारक जी के कान भरकर मुझे निकलवा दिया क्यांेकि मैंने नए-नए चले प्रतिद्वंदी दैनिक ‘हलो दिल्ली’ टाइम्स के तौर-तरीके अपनाकर बिकनी पहनी एक जापानी माॅडल का भड़काऊ चित्रा इस शालीन परिचय के साथ छाप दिया थाµ ”जापानी जलपरी जोकोयामा द्वारा होनोलूलू के सागर तट पर द्विखंडीय तैराकी पोषाक का प्रदर्शन.“ सुधारक जी ने मुझे निकाला तो नेकराम ने निर्भीक जी को ही निकाल दिया और जब वे नेकराम की माताश्री चंद्रवती जी के चरणों में गिरकर गिडगिड़ाये तब उन्होंने नेकराम से कहा कि पंडित जी को बुढ़ापे में इस तरह बेसहारा मत करो बेटा. तो पंडित जी को 40 हजार माहवार के उसी वेतन पर ‘वयार्नक्यूलनर एडवाइजर’ नियुक्त कर दिया गया और उनका सारा काम छीन लिया गया.
कई वर्ष बाद एक दिन निर्भीक जी ने मुझे रोते-रोते बताया कि कोई दिन ऐसा नहीं जाता कि नेकराम पहले मुझसे मीटिंग में न सलाह मांगे और मैं दूँ तो यह न कहे कि ”माफ कीजिए निर्भीक जी आप महापंडित नहीं, महागधे हंै.“ मैंने उन्हें समझायाµ ”आपको प्रसन्न होना चाहिए कि आपकी महानता किसी रूप में तो रेखांकित की जा रही है. और महीने में तीस बार महागधा पुकारे जाने के लिए चालीस हजार रुपया लेने को तो हर समझदार आदमी को हमेशा तैयार रहना चाहिए.“

मुंबई की चैनल से बेआबरू विदा कर दिये जाने के बाद जब मैं दिल्ली लौटा तब निर्भीक जी ने यह सूचना दीµ ”काॅमरेड शशिबाला राज्यसभा के लिए नामजद हो गई हैं और उनकी जगह ले ली है, अमेरिका से लौटी उनकी बेटी क्रान्तिबाला ने. वह तो स्वदेश और स्वदेशी संस्कृति से अगाध प्यार करने वाले सुधारक जी की रीति-नीति को तिलांजलि देने के मामले में अपने माता-पिता को भी कोसों पीछे छोड़े जा रही है. वह अब एक चोखा चैनल चलाने वाली है जिसमें ऐसे फूहड़ कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाएंगे जो भले घरों में देखे नहीं जा सकेंगे. समझ में नहीं आता कि काॅमरेड शशिबाला अपनी बिटिया द्वारा अमरीकी अपसंस्कृति आयात किए जाने का विरोध क्यों नहीं कर रही है.“
मैंने उन्हें समझायाµ ”पंडित जी मुनाफा सबका मुँह बंद कर देता है. आप भी कृपया मुँह बंद ही रखें और यही सोचकर खुश होते रहें कि यह अमरीकन बेबी अपने समाजवादी बाप की तरह आपको ‘महागधा’ तो नहीं पुकार रही है.“

वह बोेलेµ ”सो तो इसलिए कि उसे इतनी हिंदी आती ही नहीं, वह तो शिट् और शटअप ‘पन्नत जी’ कहकर काम चलाती है.“
मैंने उनसे कहाµ ”अगर आप अपना माउथ शट रखेंगे तो उसे आपकी शिट् शट कराने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी.“

मेरा घर इस बीच ‘भला’ नहीं रहा गया होगा क्योंकि जब चोखा चैनल चला मेरे बच्चे उसे नित्य नियम से देखने लगे. बीच-बीच में मैं भी दृष्टिपात करता रहा. देखकर मैं इसी निष्कर्ष पर पहुँचा कि आयुष्मती क्रान्तिबाला मुक्तमंडी, उन्मत्त व्यक्तिवाद और उन्मुक्त-हस्त राजनीति तीनों के प्रति समान रूप से समर्पिता है. तो क्रान्तिबाला उर्फ बेबी से मिलने के लिए जीन्स और टी-शर्ट धारण करते हुए मैंने प्रभु से कहाµ ”टी.वी. प्रोग्राम ‘कौन कहता है कि गाॅड मर गया?’ में तेरे चिरंजीवी होने की सूचना देने वाले अपने इस भक्त को चोखा चैनल में चोखे वेतन  पर नियुक्ति दिलवा, फिर भले ही कितनी ही चोखी अमरीकी गालियाँ खिलवा ले चोखेलाल की पोती से.“

मैंने मन-ही-मन संकल्प लिया कि मैं उस छोटी सेठानी के सम्मुख ”जो तुमको हो पसंद, वही बात करेंगे, तुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगे“ वाली भंगिमा में ही प्रस्तुत होऊंगा. अपने को माॅड बेबी का माॅड बाप सिद्ध कर दिखाऊंगा.

तो जिस समय में काॅफी-पान के लिए प्रस्थान कर रहा था इस बात की कोई आवश्यकता न थी कि मुझे अपना व्यंग्य-बोध और विवादी-तेवर दोनों ही घर पर छोड़ जाने का सदाशयपूर्ण परामर्श दिया जाये. श्रीमती जी किन्तु देकर रहीं. बोलींµ ”देखो अगर तुम्हें अपनी जिम्मेदारियों का जरा भी खयाल है तो बेबी से व्यावहारिक प्राणी की तरह बात करना, व्यंग्यकार की तरह नहीं.“

सुनकर झल्लाया नहीं, नकली बत्तीसी दिखाते हुए मुस्कराया. श्रीमती जी को घोर आश्चर्य हुआ. जितना आश्चर्य मेरी पत्नी को मेरी मुखमुद्रा देखकर हुआ उससे भी अधिक आश्चर्य मुझे घर के सामने बंद नाली की कृपा से बहती वैतरणी के पार कार के खुले दरवाजे से झाँकता बेबीनाम्नी दीर्घायुभूयात का मुखमंडल देखकर हुआ. मैंने जिस बेबी को गोद में खिलाया था वह मेरी स्मृति में एक थुलथुली और किंचित कुरूप सी कन्या के रूप में बसी हुई थी और अब मैं जिस युवती से उन्मुख था निश्चय ही विश्वसुन्दरी रह चुकी थी. वह चहककर बोलीµ ”हाय नटवर.“ कोई और दिन होता या सच कहूँ तो कोई और होती तो मैं निश्चय ही व्यंग्य करताµ ”व्याई हाय. नमस्कार-प्रणाम सब भूल गई हो. तुम्हारे घर में कोई बाप-दादा नहीं है जो बुजुर्गों को नाम लेकर पुकारती हो.“

लेकिन मैंने अपने व्यंग्यकार को विदा करके पहले एक व्यावहारिक प्राणी की तरह अपने से कहाµ ”ऐसी चंद्रवदनी, मृगलोचनी बाबा कहि-कहि जाय से तो फार-फार बैटर है कि नटवर कहि-कहि जाय. सन्तोष करो कि विलायती खिजाब किसी काम तो आया.“
और फिर मैंने उससे चहककर कहाµ ”हाय बेबी.“ और उसके पाश्र्व में जा बैठा, शाॅफर ने दरवाजा बंद कर दिया और गाड़ी चली. बेबी ने थोड़ा-सा झुककर अपना एक कपोल मेरी ओर बढ़ाया. मैं पहले अचकचाया. फिर मैंने विलायती खिजाब का नाम लेकर उसके कपोल पर कपोत-चुम्बन अंकित कर ही दिया.

वह बोली ”आप गे्रट लग रहे हो नटवर.“ मैं बोलाµ ”आप गाॅर्जस लग रही हैं बेबी.“
मेरे फ्लैट से पीवीआर काॅप्लेक्स तक की कार यात्रा और फिर कार से उतरकर काॅफी पार्लर तक की पदयात्रा के दौरान हम इसी तरह परस्पर-प्रशंसा मंे लीन रहे, कई बार तो हमने ‘यू टू’ अर्थात् ‘आप भी’ कह देने के अधुनातन सूत्रा से काम चलाया. अगर आप मुझे ओके पा रही हैं तो मैं भी आपको ओके पा रहा हूँ.

और इस प्रकार हम दोनों ही ओके ठहर रहे हैंµ एक महत्वपूर्ण सौदे से पहले के इन महत्वहीन क्षणों में. विलायत-लौटता बेबी के ऐसे कुछ महत्वहीन क्षण पीवीआर काॅप्लेक्स के प्रांगण की टूट-फूट और गन्दगी से अपना और अपने जूतों-कपड़ों का बचाव करने मंे भी व्यतीत हुए. इस गंदगी में वे गरीब भी शमिल थे जो वहाँ शौकीन-मिजाज अमीरों को घूरने का अपना शौक पूरा करने के लिए आये हुए थे. उनके घूरने के लिए पर्याप्य नयनसुख सामग्री उपलब्ध थीµ जैसे ओंठ से ओंठ मिलाये आलिंगनबद्ध उच्चवर्गीय युवा जोड़े, पत्नी किंवा प्रेमिका के कंधे में हाथ डाले उच्चवर्ग की ओर अग्रसर अधेड़ मध्यमवर्गीय पुरुष, भयंकर शीत-प्रकोप को जैकेट के बटन खोल अपने उन्नत उरोजों की ऊष्मा से दूर भगाती युवतियाँ और गन्दे टूटे आँगन के उस पार विलायत की याद दिलाती झकाझक दुकानें और रेस्तरां. मेरा चित्त प्रसन्न हो उठा कि भारत के कीचड़ में कमलवत् उगे इस इंडिया की एक मीडिया-राजकुमारी की बाँह थामे मैं महँगी काॅफी पीने जा रहा हूँ और पहली दुनियारूपी दिल्ली की तीसरी दुनियारूपी गंदी बस्तियों के युवाओं की ईष्र्या का पात्रा बन रहा हूँ.

मुझे अतिरिक्त प्रसन्नता यह सोचकर हुई कि मेरे गाँव की उस इष्ट देवी और इस कम्युनिस्ट बेबी ने चाहा तो शीघ्र ही मैं भी महँगी काॅफी पीने-पिलाने की स्थिति में पहुँच जाऊँगा. हम पार्लर में पहुँचे. बेबी ने अपने लिए कापूचीनो काॅफी और ब्लैक फाॅरेस्ट पेस्ट्री आर्डर की और मैंने कहाµ ”सेम हियर.“ लोगों को मित्रा बनाने और प्रभावित करने की दृष्टि से ‘सेम हियर’ उपयोगी ठहराया गया है क्योंकि इसे सुनकर सुनने वाला यह मान लेता है कि कहनेवाला मेरी तरह ही सुरुचि-संपन्न है. काॅफी और पेस्ट्री आने तक हमने पहले मौसम के बारे में बात की और फिर ‘कमजोर कड़ी कौन’ नामक एक नए ‘शो’ के बारे में बातें करते रहे, ‘गरीबी मिटाओ, भुखमरी भगाओ’ और ‘गन्दगी गायब करो’ µ जैसे चमत्कारी मंत्रों के प्रभाव से सभी आधारभूत समस्याओं का समाधान हो जाने के बाद गम्भीर चर्चा के लिए अब बस इसी तरह के कुछ विषय बचे हैं.

एक और विषय ‘छुट्टियाँ कहाँ बिताई’ उर्फ ‘रंगरेलियाँ कैसे मनाईं’? का भी हो सकता था किंतु मीडिया से स्थायी छुट्टियाँ या रंगरेलियाँ मनाने कहीं नहीं जा सका था. महत्वपूर्ण सौदेबाजी से ठीक पहले अपने धनाभाव को ध्वनित करनेवाला कोई वचन उचार देना मेेरे लिए भयंकर रूप से हानिकार हो सकता था. मौसम और टीवी शो के बारे में भी बातचीत की पहल मैंने ही की ताकि उसका विचार जानते ही समर्थन का प्रस्ताव रख डालूँ. यथा, जैसे ही उसने यह कहा किµ ”मुझे नीना गुप्ता का केथ्री पसंद आया क्योंकि वह लाइफ की रिएलिटीज फेस करना सिखाता है. मैं तुरंत बोल उठाµ ”आई एग्री.“
वह थोड़ा चैंकी और बहुत खुश हुई. बोलीµ ”ग्रेंड डैड और उनके वे पन्नत सोमपाल तो बोले कि के थ्री हमारे इंडियन ट्रेडिशन्स के अगेन्स्ट में है.“

मैंने कहाµ”नो वे बेबी! के थ्री तो कौटिल्य के अर्थशास्त्रा के ट्रेडीशंस में है और कौटिल्य सोमपाल जी से कहीं ज्यादा इंडियन था.“
इस पर बेबी ने अपने पर्स में से छोटी-सी नोटबुक निकालकर दी कि इसमें ये जो भी कुटल्या है उसके बारे में दो-एक लाइन यहाँ लिख दो आप. मैंने लाइक मुँह बंद कर देना है पन्नत का उन्हें सुनाकर.

मैंने प्रसन्न होकर एक-दो पंक्तियों की जगह पूरा पैराग्राफ ही लिख मारा. इस बीच काॅफी और पेस्ट्री आ गई. काॅफी का एक लम्बा घूंट भर चुकने के बाद बेबी ने मेरी ओर मुस्कराकर देखा और फिर नितांत सुदीर्घ ‘सो’ उचारा और उसमें ‘नटवर’ जोड़ दिया. गंभीर सौदेबाजी का श्रीगणेश आजकल इसी तरह होता है. मैं प्रभु से प्रार्थना करने लगा कि मीडिया कुमारी से मुझे चोखा चैनल में काम करने के लिए बढ़िया वेतन और सुख-सुविधा दिलवा. लेकिन मीडिया कुमारी के मन में कुछ और था और उसके लिए भी वह पहले मुझे टटोल लेना चाहती थी. तो ‘सो नटवर’ कह चुकने के बाद बेबी ने काॅफी का एक और घूंट भरा और फिर बोलीµ ”लाइक आई टोल्ड यू आॅन फोन हम चाहते हैं आपके लिए कुछ करें.“

मैंने तय पाया कि थोड़ा भाव लेना बहुत जरूरी है. तो पेस्ट्री और सौदेबाजी दोनों का समान रूप से मजा लेता हुआ मैं बोलाµ ”मेरा भला चाहने वालों के क्लब में तुम्हारा स्वागत है बेबी. रोज कोई-न-कोई पार्टी कोई-न-कोई आकर्षक प्रस्ताव लेकर मेरे पास पहुँच रही है.“

वह बोली ”लाइक हू.“ मैंने कहाµ ”सारे आॅफर सुनाकर तुम्हारा और अपना वक्त बर्बाद नहीं करना चाहता. उदाहरण के लिए बस इतना ही बता दूँ कि सीएनएन वाले मुझे हिन्दी न्यूज के लिए लेने की बात कर रहे हैं और एक एनआरआई पार्टी मीडिया मुगल रूपर्ट मर्डोक से मिलवाने ले जाना चाहती है.“

बेबी ने जिज्ञासा कीµ ”किस कनेक्शन में.“
मैंने कहाµ ”उससे पहले तो यह बताओ कि मुझे किस कनेक्शन में बुलाया है तुमने?“ इस पर मीडिया-राजकुमारी बोलीµ ”वैल मैंने आपको ‘शुभ प्रभात दिल्ली ब्रांड’ के कनेक्शन में बुलवाया है.“

मैं चोखा चैनल में नियुक्ति की आशा लेकर आया था इसलिए एक बार तबीयत हुई कि कह दूँ मैं प्रिंट मीडिया में आना ही नहीं चाहता. लेकिन तभी बेतार द्वारा श्रीमती जी ने मेरे कान में कहा ”सावधान!“ और मैं अपना डायलाॅग बदलकर यह बोलाµ ”शुभ प्रभात ब्रैंड को देखने के लिए तुम्हारे ग्रेंड डैड हैं तो.“

एक गहरा निश्वास छोड़कर वह बोली ”वही तो रोना है. लुक नटवर हमारे ‘इंडिया टाइम्स’, इंडिया वीक और ‘द रिबैल’ तीनों बै्रंड’ मार्केट में अपने सारे राइवल्स को बीट कर चुके हैं लेकिन ‘शुभ प्रभात दिल्ली ब्रंैड’ अपना बहुत बड़ा मार्केट  शेयर ‘हलो दिल्ली टाइम्स’ को दे बैठा है जो इस समय नंबर बन पर है. शुभ प्रभात नंबर थ्री पर चल रहा है. फ्रेंकली नटवर आई तो थाॅट कि हमें अपने लाॅसेज कट करते हुए इस ब्रैंड को ही बंद कर देना चाहिए.“

वह काॅफी का घूंट भरने के लिए रुकी और मैं बोल उठाµ ”वही बैस्ट रहेगा.“
वह पहले चैंकी और फिर संतुष्ट होकर मुस्कराईµ ”आप ग्रैंड डैड की एज के हो नटवर बट आपका दिल और दिमाग यंग है. काश ग्रैंड भी आप-जितने समझदार होते, ही तो थिंक्स कि ‘शुभ प्रभात’ ही हमारी कंपनी का फ्लैगशिप है.“
मैंने कहा ”उन्हें समझना चाहिए कि यह जंक हो चुका फ्लैगशिप खुद तो डूबेगा ही कंपनी को भी ले डूबेगा.“
 
वह बोलीµ ”एक्जैक्टली. लेकिन ग्रैंड डैड के सेंटीमैंट्स जुड़े हैं इसलिए माॅम और डैड रीवैम्प की बात कर रहे हंै. मैं आपसे फ्रेंक बात करना पसंद करूंगी तो रीवैम्पिंग के लिए आप मेरी फस्र्ट च्वाॅइस नहीं थे. मैंने स्टार टीवी से किसी न किसी यंग एक्जीक्यूटिव को तोड़ लाना है. लेकिन ग्रैंड डैड को नयी जनरेशन के लोग पसंद ही नहीं आते.“

मैंने कहा ”चच्च्च्. टू बैड, टू सैड. आपके ग्रैंड डैड को खुद रिटायर हो जाना चाहिए. जो नयी जनरेशन के साथ कदम मिलाकर नहीं चल सकता उस टेªडीशनल इंसान को यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि हमारे यहाँ वानप्रस्थ लेने का ट्रेडीशन भी था.“

वह बोलीµ ”राइट यू आर. बट ग्रैंट डैड बोले कि ‘राष्ट्रीय रणभेरी ब्रंैड’ ने भी तो श्याम संुदर पांडे को कंसलटेंट रख लिया है. हू इज लाइक सिक्सटी और सेवंटी.“

मैंने कहा ”सठिया चुके श्याम सुन्दर जी को साठ हजार माहवार और बंगला कार पर कन्सलटैंट अपाॅइंट करके ‘राष्ट्रीय रणभेरी’ ने ब्लंडर कर डाला है. श्याम सुन्दर बेसिकली पोएट है और उसकी सलाह पर चलने से राष्ट्रभेरी की बची-खुची आवाज भी बंद हो जाएगी.“
बेबी बोली ”आइ मस्ट से नटवर मैं आपको जितना ही सुन रही हूँ उतना ही डैड की चाॅइस की दाद दे रही हूँ. यू सी हमारी फेमिली काउंसिल में माॅम ने कहा कि श्याम सुन्दर को तो उन लोगों ने ब्राह्मण लाॅबी को प्लीज करने के लिए रख लिया है. दैन ग्रैंड माॅम सैड कि ठाकुर लाॅबी इज लाइक थोड़ा अनहैप्पी हम लोगों से. ठाकुरों से कौन सीनियर जर्नलिस्ट इस समय लाइक अनएंप्लाइड है. दैन डैड-सैड कि नटवर सिंह तोमर कैसा रहेगा? थोड़े डिसकशन के बाद ग्रैंड डैड-सैड, ओ.के. एंड सो हियर ही आर. नाउ व्हाॅट सेज यू.“
मैं पेस्ट्री का पिष्ट-पेषण करते हुए बोलाµ ”आई से नो.“
बेबी को मानो आपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ. बोलीµ ”व्हाॅट डू यू मीन नो?“
मैंने कहाµ ”एनओ नो, नो माने नहीं.“
वह बोलीµ ”बट क्यों नटवर?“
मैंने कहाµ ”यों बेबी कि ‘ए’µ मैं“?
अनएंप्लाइड नहीं हूँ. मैं एक ओर हिन्दी का महान उपन्यास लिखने में जुटा हुआ हूँ और दूसरी ओर मर्डोक से होने वाले सौदे का इंतजार कर रहा हूँ. ‘बी’µ जिस अखबार का नाम ही ‘शुभ प्रभात दिल्ली’ हो वह रीवैम्प हो ही नहीं सकता.
वह बोलीµ ”आई तो हंड्रेड परमेंट एग्री लेकिन लाइक करना तो वही है सो?“
मैंने कहाµ ”सो नथिंग.“
वह हैरान होकर बोलीµ ”यू मीन आप लाइक इंट्रेस्टिड नहीं हैं?“
मैंने कहाµ ”लुक क्रान्ति बेबी मैं काॅफी पीने में इंट्रेस्टिड होकर आया था, फ्री कंसलटैंसी देने में नहीं. खैर तुम्हारे परिवार में पुराने परिचय को ध्यान में रखकर मैं एक सलाह तो मुफ्त दे ही सकता हूँ. रीवैम्प के लिए सबसे पहले इस ब्रांड को रीनेम करो, ‘शुभप्रभात दिल्ली’ की जगह ‘हाय डेल्हीµ शुभ प्रभात दिल्ली’.“
बेबी के चेहरे पर चमक आ गई और उसने कहाµ ”यह तो लाइक गुड साउंड कर रहा है लेकिन खाली ‘हाय डेल्ही’ क्यांे नहीं.“
मैंने कहाµ ”इसलिए कि हमारा प्रोडक्ट उस भारत दैट इज इंडिया में बिकना है जिसे नई पीढ़ी इंडिया दैट इज भारत बनाना चाहती है. खाली ‘हाय डेल्ही’ नाम रखने से एक तो ब्रांड कंटीन्यूटी टूटेगी और दूसरे हमारे इमेज अपमार्केट के साथ-साथ थोड़ी नव-धनाढ्य, मेरा मतलब है अपस्टार्टिश भी बनेगी जैसी कि ‘हलो दिल्ली टाइम्स’ की बनी है. यह दुहरा नाम रखने से हम मार्केट को यह संदेश देंगे कि हमारा ब्रांड पोती क्रान्तिबाला और दादा चोखेलाल दोनों का अपना है. लेकिन हमारी प्रायोरिटीज बिल्कुल साफ हैµ पहले पोती का खयाल रखेंगे और फिर दादा का, बल्कि एक और मुफ्त सलाह ले लो कि नये नामकरण के बाद एक कैम्पेन में अपना और चोखे लाल जी का मिलकर अखबार बांचते हुए चित्रा छपवाओ कि दादा और पोती दोनों का ही अपना.
बेबी ‘वंडरफुल’ कहते हुए मेरी ओर झुकी और अपने ओंठों की बैजनी छाप मेरे गाल पर छोड़ गई. अवसर उपयुक्त जान मैंने गंभीर सौदेबाजी शुरू कर दी. कहाµ ”देखिये मिस आपका यह ‘किस’ मेरे लिए वैल्कम है इसलिए इसे डिसमिस तो नहीं करता लेकिन साथ ही यह भी कहना चाहता हूँ कि अगर आप लोगांे के अनुसार मैं बेरोजगार हूँ तो केवल आपके ‘किस’ मेरे लिए किस काम के?“
वह बोलीµ ”हम आपको लाइक वही सब दे देंगे जो रणभेरी वालों ने सतनाम को दिया है.“
मैंने कहाµ ”मुझे पहले थोड़ा हँस लेने दीजिये.“
मैंने सचमुच हँसा तो वह हैरान हुई, बोलीµ ”आइ डाॅण्ट गैट इट.“
मैंने कहाµ ”यस यू डांट गैट मी फौर साठ हजार रूपल्ली माहवार.“ दादा-पोती दोनों को खुश कर सकने वाला मेरे टाइप इंसान तो टैक्स के बाद एक पेटी आई मीन एक लाख प्रतिमाह पर ही मिलेगा.“
बेबी बोलीµ ”ऐसा है नटवर, आप और मैं वेल वाइब करते हैं तो थोड़े ज्यादा या कम होने से हम दोनों को ही लाइक कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए. आई प्रोमिस यू साथ काम करने में बड़ा मजा आएगा.“
मैंने कहा ”आइ प्रामिस यू कि मैं पूरा मजा लूँगा लेकिन आइ मस्ट टेल यू कि वेतन कम-ज्यादा होने से मुझे फर्क पड़ेगा.“
वह बोली ”ठीक है. मेरी तरफ से तो ओके है लेकिन फाइनल बात तो डैड ही करेंगे.“

तो आगे नेकराम जी ने बात की और उनके आगे मेरी एक न चली. उन्होंने मुझे दबाया और मैं दबा क्योंकि मैं श्रीमती जी की चेतावनी पाकर आया था कि ऐसी बेवकूफी मत करना कि मिलती नौकरी से हाथ गंवाओ. मैंने बढ़ती ठाकुर शक्ति की लाॅबी का बहुत बखान किया कि इस समय दो-दो सीएम हमारे हंै और कभी प्रभु ने चाहा तो पीएम भी फिर हो जाएगा. लेकिन वह नेक इंसान साठ के ऊपर पाँच हजार से ज्यादा देने को तैयार ही नहीं हुआ. मैं यही सोचकर खुश हो लिया कि सतनाम से प्लस फाइव ठहरूँगा दुनिया की आँखों में.

सलाहकार संपादक नियुक्त हो जाने के बाद मैंने प्रबंध संपादक काॅमरेड शशीबाला को पहली नेक सलाह यह दी कि इस ब्रांड से जुडे़ संपादक समेत सभी अधिकारियों की छुट्टी करा दें. ‘मरे काठ’ की छंटनी के प्रस्ताव से हर मालिक की तरह काॅमरेड भी पुलकित भई. जिस भी ‘मरे काठ’ को तीन माह का वेतन थमाया गया और वह मुझे ही नहीं, मेरे आने वाली सात पीढ़ियों को कोसता हुआ मीडिया-भवन से उसी तरह बेआबरू बाहर निकलता पाया गया जैसे कभी मैं निकला था. कहना न होगा कि इससे मेरी छाती को बड़ी ठंडक पहुँची. छाती के ज्यादा ही ठंडे हो जाने से कहीं मुझे भी सुधारक जी की तरह दमा न हो जाये इस भय से मैंने उसी रात अपने क्लब में, जिसमें मेरे खर्चो का भार अब चोखे परिवार उठा रहा था स्काॅचोत्सव का आयोजन किया. इसमें मैंने विशेष रूप से आमंत्रित कियाµ ‘हलो दिल्ली टाइम्स’ के सहायक संपादक मुचकुंद शुक्ल, दिल्ली की पार्टियों की शोभा सुलेखा और वामपंथी कवि पत्राकार अग्निबोध को. मुचकुंद कभी मेरा चेला रह चुका था और इस बात से दुःखी था कि राजनीतिक दृष्टि से शक्तिशाली संपादक सारा काम उसके जिम्मे छोड़कर नेता-बिरादरी के साथ हवाई जहाजों में देश-विदेश घूमता-फिरता है. उससे मैंने कहा कि चरण दबाते रहने का आश्वासन दे तो मैं तुझे ‘हाय डेल्ही’ का संपादक बनवा दूँगा. उसने तुरंत झुककर पहले चरण-रज ली और फिर वहीं पाँव भी दबाने लगा.

उसे धकियाकर मैं सुलेखा की ओर बढ़ा. अत्यंत निम्न कोटि की अंग्रेजी पत्राकार और अत्यंत उच्चकोटि की कामोत्तेजक सुंदरी सुलेखा एक दशक पहले तक बैकवर्ड लाॅबी के एक बलिष्ठ नेता की फाॅरवर्ड पे्रमिका होने के नाते टीवी प्रोग्राम ‘एंकर’ करने के अनुबंध पाती रही थी और इस प्रकार टीवी माध्यम से उनका काफी ‘एक्सपोजर’ उर्फ उद्घाटन हो चुका था. लेकिन उस नेता-विशेष के गुजर जाने के बाद से वह बेचारी ऐसी कटी पतंग बनी हुई थी जिसे लूटने को कोई मोटा आसामी नहीं उछल रहा था. टीवी में उसका एक्सपोजर होना भले ही बंद हो गया था पत्रा-पत्रिकाओं में इस नाते होता ही रहा था कि उभारों का पर्याप्त उद्घाटन करने वाले अपने वस्त्रों के कारण वह दिल्ली-दरबार उर्फ सेलिब्रिटी सर्किट की एक जानी-पहचानी हस्ती बन गई थी. मैंने सुलेखा के आगे ‘हाय डेल्ही’ की फीचर संपादिका बन जाने का प्रस्ताव रखा जिससे वह इतनी ‘थ्रिल’ हुई कि उसने मुझे बाँहों में भींचकर लगभग ‘किल’ ही कर दिया.

सुलेखा से मुक्ति पाकर मैंने अग्निबोध को डबल पैग बनवाकर दिया और उससे कहा कि आधुनिक हिंदी  समाचार-पत्रा ‘हाय डेल्ही’ को वामपंथी तेवर  देने में काॅमरेड शशिबाला की सेवा में आ जाओ अब. अग्निबोध समझदार है. इसलिए उसे ज्यादा समझाने की आवश्यकता पड़ी नहीं. केवल इतना ही कहना पड़ा कि तुम और जो कुछ करना साहित्यकारों से स्तंभ मत लिखवाना. वह बोलाµ ”मैं अकेला ही सवा लाख साहित्कारों के बराबर हूँ.इसलिए और किसी से लिखाने की बजाय अपना स्तंभ ‘दृष्टिकोण’ आपके यहाँ चलाता रहूँगा.“

मैंने कहा ”अवश्य किन्तु एक निवेदन है उसका नाम बदलकर ‘मद्देनजर’ कर देना.“
अग्निबोध बोला ”क्यों नटवर जी?“

मैंने कहा ”यों कि मद्देनजर आज चैनल-चैनल की जबान पर चढ़ा हुआ है और वही हमारी सैक्यूलर हिंग्लिश के ‘मद्देनजर’ पर स्थित है.“
इससे वह सहमत हुआ. हम समझदार लोग इस तरह के मामलों में सहमत होते ही रहते हैं. लेकिन अगले दिन ‘हाय डेल्हीµ शुभ प्रभात दिल्ली’ की पहली बैठक में मुझे बीच-बीच में नादान मालिकों की असहमति से निपटना पड़ा. सुधारक जी की दमे की शिकायत इन दिनों बढ़ी हुई थी इसलिए उनकी अस्वस्थता के मद्देनजर यह बैठक सुधारक जी के निवास स्थान पर हुई. मैंने आरंभ में ही यह निवेदन कर दिया कि सुधारक जी की अस्वस्थता के के मद्देनजर हमें सभी निर्णय कम-से-कम समय में लेने का प्रयास करना होगा. लेकिन स्वयं सुधारक जी ने पहले ही ग्रास में विवाद की मक्खी डाल दी.

बोले ”भई ठाकुर नटवर सिंह तुम तो मेरे शिष्य रहे हो, तुम्हें हिन्दी के बीच में इस तरह फारसी घुसेड़ना शोभा नहीं देता,“
मैंने कहा ”सुधारक जी आपके आराध्य गाँधी जी की गंगा-जमुनी हिंदुस्तानी की याद दिलाने के लिए मुझे ही नहीं, अपने ध्वजपोत ‘शुभ प्रभात दिल्ली’ के हर कर्मचारी को यह अनुमति दें कि वह हर बात को किसी बात के मद्देनजर होता हुआ देखेµ दिखाये और ‘तफ्सील’ के अर्थ में ‘खुलासा’ का प्रयोग करें. उसी से पता चल सकेगा कि हम सांझा संस्कृति में विश्वास करते हैं.“
सुधारक जी बहस करने लगे और चंद्रवती जी इसमें उनका साथ देने लगीं. बेबी झल्लाई और बोलीµ ”प्लीज-प्लीज आज के एजेंडा पर स्टिक कीजिये.“
सुधारक जी शायद फिर भी बोलते रहते लेकिन उन्हें खाँसी का दौरा पड़ चुका था. स्थिति का लाभ उठाते हुए मैंने कहाµ ”आज के एजेंडा में तो नए स्टाॅफ की नियुक्ति ही प्रमुख है. मैंने संपादक पद के लिए राइवल ब्रांड ‘हलो दिल्ली टाइम्स’ के सहायक संपादक मुचकुंद शुक्ल को हमारे यहाँ संपादक होकर आ जाने के लिए राजी कर लिया है. इस नाम का केवल बेबी ने विरोध किया जिसके अनुसार मुचकुंद का नाम, मुचकुंद का चेहरा-मुहरा, मुचकुंद की सज-धज और मुचकुंद की जीवन-दृष्टि सभी समान रूप से आउट आॅफ डेट थे. मैंने उसे समझाया कि मुचकुंद भले ही फैशन परेड में भेजने लायक न हो, सत्ता के गलियारों में भेजे जाने लायक अवश्य है क्योंकि सवर्ण पत्राकारों में एक अकेला वही है जिसकी दलित और बैकवर्ड लाॅबी के नेताओं से भी गहरी छनती रही है. सुधारक जी के ध्वजपोत का कप्तान ओल्ड फैशनंड होने से हमारे पुराने पाठक आश्वस्त होंगे और प्रस्तावित परिवर्तनों पर आपत्ति नहीं करेंगे.“

इसके बाद समाचार संपादक के लिए मैंने अग्निबोध का नाम प्रस्तावित किया. शशिबाला ने उत्साह से अनुमोदन किया किन्तु चन्द्रवती देवी को भयंकर आपत्ति हुई. बोलीµ ”वह तो कम्युनिस्ट है. उससे कहीं अच्छा तो सुधेन्दु रहेगा.“

मैंने निवेदन किया ”भाभी जी कैपिटिलिस्टों को यही शोभा देता है कि कम्युनिस्टों को अपने यहाँ नौकरी में रखें उसके रहने से अपने को उदार वामपंथी लोकछवि मिलेगी और बुद्धिजीवी वर्ग हमारी मीडिया से जुड़ेगा.“
चन्द्रवती जी बोलींµ ”सुधेन्दु भी बुद्धिजीवी है.“
 
More from: Kathadesh
836

ज्योतिष लेख

मकर संक्रांति 2020 में 15 जनवरी को पूरे भारत वर्ष में मनाया जाएगा। जानें इस त्योहार का धार्मिक महत्व, मान्यताएं और इसे मनाने का तरीका।

Holi 2020 (होली 2020) दिनांक और शुभ मुहूर्त तुला राशिफल 2020 - Tula Rashifal 2020 | तुला राशि 2020 सिंह राशिफल 2020 - Singh Rashifal 2020 | Singh Rashi 2020